राजेश सिन्हा कोरोना महामारी की बढ़ती दूसरी लहर ने इंसानों की जिंदगी के साथ-साथ शायद इंसानियत की भी जान लेनी शुरु कर दी है।स्थिति यह बन गई है कि शासन-प्रशासन को कोसने में लगे कुछ चुनिंदा लोग मुसीबत की इस बेला में अपने खून के रिश्तेदारों को भी पहचानने तक से इंकार करने लगे हैं।रुपये-पैसे और पैरवी कहीं काम नहीं आ रहे हैं।सरकारी के साथ-साथ गैर सरकारी अस्पतालों में भी मरीज अटे पड़े हैं।शमशान और कब्रिस्तानों में लाशों की ढ़ेर पड़ी है।बूढ़ी नजर के हो चुके इंसानों सहित अधिकांश लोगों का कलेजा शमशानों में जलती चिताएं और कब्र स्थानों में दफन होते जनाबों के शव को देखकर तो क्या,सुनकर ही फट रहा है।लेकिन कफन में भी पॉकेट तलाशने के आदि हो चुके लोग इस विकट परिस्थिति में भी धन कमाने का अवसर तलाशने में लगा है।कहा जा सकते है कि इंसानों को पहचानने से भी इंसान परहेज करने लगे हैं। —- टीवी चैनलों पर नजरें टिकाए बैठे दर्शकों के सामने दिल दहला देने वाले नजारे व स्टोरी परोसे जा रहे हैं।टीआरपी के फिराक में सनसनीखेज खबरें दिखाई जा रही है।शायद साकारात्मक खबरों से सरोकार नहीं रह गया हो।वरिष्ठ पत्रकार व साहित्कार रंजन वर्मा,शंभू शरण सिंह,प्रोफेसर अरविन्द कुमार सिंह,प्रभात सुमन,आजाद राजीव रंजन सहित अन्य वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि स्वस्थ्य होकर घर लौटे लोगों से मिलकर खबर बनाने की कोशिशें अगर हो, तो कहा जा सकता है कि समाज के सभी लोगों के मनों में साकारात्मक विचारों का उदय होगा और नाकारात्मक बातें दम तोड़ेगी। — बात अगर समस्याओं की करें तो, इस विकट समय में जाहिर तौर पर विभिन्न तरह की समस्याएं भी सूरसा के समान मुंह फैलाती जा रही हैै।