राजेश सिन्हा की रिपोर्ट
पटना:लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण का मतदान बीते 7मई को शांतिपूर्ण माहौल में सम्पन्न होने के बाद भी प्रत्याशियों के चेहरे पर अब भी थकान के भाव दिख रहे हैं।कह सकते हैं कि ना ही एनडीए खेमा के प्रत्याशियों को नींद आ रही है और ना ही इंडिया गठबंधन समर्थित प्रत्याशी चैन की नींद सो पा रहे हैं।जिन्हें नींद की टिकिया खाकर सोने की आदत है,उन्होंने टिकिया का डोज बढ़ा दिया है।बावजूद इसके करवटें बदल- बदलकर रात काटना उनकी मजबूरी बनी हुई है।बात अलग है कि उनके समर्थक अपने-अपने राजनीतिक गणित के हिसाब से अपने-अपने प्रत्याशी की जीत का दावा कर रहे हैं।यह भी कहा जा सकता है कि सभी खेमे में वोट प्रतिशत को लेकर सुबह से देर रात तक जोड़ घटाव का दौर चल रहा है।झंझारपुर,मधेपुरा,सुपौल, अररिया और खगड़िया के मतदाताओं ने किन पर भरोसा जताते हुए प्यार लुटाया,यह तो आगामी 4जून को स्पष्ट तौर पर कहा जा सकेगा।लेकिन चुनावी जोड़ घटाव के आधार पर कहा जा रहा है कि मधेपुरा में जदयू के निर्वतमान सांसद दिनेश चन्द्र यादव , सुपौल में दिलेश्वर कामत और अररिया में प्रदीप सिंह की बातों को अगर छोड़ दें तो अन्य दो लोकसभा में महागठबंधन के उम्मीदवार एनडीए प्रत्याशी पर अगर भारी पड़ जाएं तो लोगों को शायद अचरज नहीं होना चाहिए।
यादवों के गढ़ कहे जाने वाले मधेपुरा में देर से जनता के बीच आए राजद उम्मीदवार प्रोफेसर कुमार चन्द्र दीप वोटरों से शायद उस हिसाब से कनेक्ट नहीं हो पाए,जिसकी उम्मीद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव कर रहे थे।जिसके कारण जदयू के दिनेश चन्द्र यादव को एक बार फिर स्वजातीय वोटरों का बहुत प्यार तो मिला ही,सीएम नीतीश कुमार के कोर वोटरों ने भी उनका बहुत साथ दिया।मोदी मैजिक चलने के कारण भी मधेपुरा के निर्वतमान सांसद दिनेशचन्द्र यादव और उनके समर्थक गदगद नजर आ रहे हैं।सुपौल में निर्दलीय प्रत्याशी सेवानिवृत्त अधिकारी बैधनाथ मेहता अंतिम समय तक मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की भरपूर कोशिश करते रहे,लेकिन वह राजद के चन्द्रहास चौपाल के वोट बैंक में शायद सेंधमारी नहीं कर सके।इसीलिए जदयू के दिलेश्वर कामत और चन्द्रहास चौपाल के बीच कड़ी टक्कर होने की बात सियासी गलियारे में कही जा रही है।जीत चाहे जिनकी भी हो, लेकिन अंतर काफी अधिक नहीं होने की बात कही जा रही है़।
झंझारपुर में भी कमोवेश इसी तरह की स्थिति रही।बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार गुलाब यादव तमाम प्रयास के बाद भी राजद के माय समीकरण में शायद सेंध नहीं लगा सके।इसीलिए महागठबंधन समर्थित वीआईपी प्रत्याशी सुमन महासेठ वैश्य वोटरों सहित एनडीए के कुछ कोर वोटरों को अपने पक्ष में गोलबंद कर जदयू के रामप्रीत मंडल को कड़ी चुनौती देते हुए बताए जा रहे हैं।अररिया में शत्रुधन मंडल को कुशवाहा और कुर्मी वोटरों का साथ मिला।इसीलिए भाजपा के प्रदीप मंडल की परेशानी बढ़ सकती है।वैसे आरजेडी के शहनवाज आलम ने मतदान का समय आते-आते अपने भाई का समर्थन तो प्राप्त कर लिया,लेकिन मुस्लिम बहुल इस लोकसभा में मुस्लिमों के साथ-साथ यादवों ने भी उनका भरपूर साथ नहीं दिया।इसीलिए वह भी थोड़े परेशान दिख रहे हैं।
हालांकि यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा ने मतदाताओं को काफी प्रभावित किया।इसीलिए यह कहा जा सकता है कि यहां मोदी मैजिक भी मतदाताओं के सिर चढ़कर बोलता नजर आया और प्रदीप सिंह एक बार फिर खुशनसीब कहे जा सकते हैं।सियासी जानकारों का कहना है कि जहां-जहां पीएम की सभा हुई,वहां-वहां मोदी लहर की झलक अधिक दिखी।लेकिन मुफ्त अनाज का असर सहित केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं का प्रभाव लगभग सभी जगह के मतदाताओं में देखने को मिला।
बात अगर खगड़िया लोकसभा की करें तो यहां दागी,बाहरी और स्थानीय प्रत्याशी का मामला अंतिम समय तक गहराया तो रहा ही,टिकट नहीं मिलने से नाराज लोजपा के निर्वतमान सांसद चौधरी महबूब अली कैसर अंतिम समय में राजद खेमे में जाकर लोजपा(रामविलास)प्रत्याशी राजेश वर्मा की राह में रोड़ा बनते नजर आए।सीएम नीतीश कुमार की सभा होने के बाद भी जदयू के परबत्ता विधायक डॉ संजीव कुमार,बेलदौर के जदयू विधायक पन्ना लाल पटेल और खगड़िया की पूर्व विधायक पूनम देवी यादव का एनडीए प्रत्याशी के पक्ष में खुलकर सामने नहीं आना एलजेपी(रामविलास)के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है।डॉ संजीव कुमार के सगे भाई और कांग्रेस के स्थानीय एमएलसी राजीव कुमार महागठबंधन समर्थित सीपीआईएम प्रत्याशी संजय कुशवाहा के पक्ष में खुलकर बैटिंग करते रहे,लेकिन डॉ संजीव एलजेपी प्रत्याशी के पक्ष में फ्रंट पर नहीं आए।
वैसे,परबत्ता विधायक डॉ संजीव कुमार के समर्थकों का कहना हुआ कि उनके विधायक बेहद ही स्वच्छ छवि के हैं।इसीलिए वह किसी दागी उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार कर अपने दामन को भी दागदार नहीं कर सकते।नतीजतन खामोश रहना ही उन्होंने श्रेयस्कर समझा।सियासी जानकारों का भी कहना है कि सीएम नीतीश कुमार ने अपने सभी विधायकों और पूर्व विधायकों को यह जरुर कहा कि गठबंधन धर्म का पालन करना है।लेकिन यह कभी नहीं कहा कि अपने दुश्मन को माफ करना है।इसीलिए जेडीयू के विधायक और पूर्व विधायक सहित जेडीयू के जमीनी व प्रभावी नेताओं ने ना ही एलजेपी प्रत्याशी का खुलकर विरोध किया और ना ही समर्थन।
जेडीयू के वरिष्ठ नेता और सीएम नीतीश कुमार के बेहद करीबी कहे जाने वाले पूर्व मुखिया अशोक सिंह ने सीपीआईएम प्रत्याशी को खुलकर साथ दिया।यहां तक कि कुर्मी समाज के बड़े नेता होने के नाते उन्होंने अपने स्वजातीय वोटरों से चिराग को सबक सिखाने का आह्वान भी किया।जिसके कारण कुर्मी समाज के लगभग पचास प्रतिशत मतदाताओं ने संजय कुशवाहा को सिर आंखों पर बिठाना शायद मुनासिब समझा।अशोक सिंह सीएम नीतीश कुमार के बीमार होने का ठीकरा चिराग के सिर फोड़कर अपने स्वजातीय वोटरों से कहते रहे कि उनके नेता नीतीश कुमार का कुर्ता चिराग ने छोटा किया।इसीलिए इस बार किसी भी कीमत पर चिराग का भी कुर्ता छोटा करना है।
कहा जा रहा है कि एनडीए में रहने के बाद भी पशुपति कुमार पारस के समर्थकों ने महागठबंधन प्रत्याशी संजय कुशवाहा का समर्थन किया।बिहार में चिराग का जनाधार भले ही बढ़ा हो,लेकिन कम से कम खगड़िया में चाचा पशुपति कुमार पारस के जनाधार को कम आंकना भारी भूल साबित हो सकती है।बात अलग है कि चिराग के प्रत्याशी को दरकिनार कर सीपीआईएम प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने की बात सियासी गलियारे में दौड़ते ही पशुपति कुमार पारस और समस्तीपुर के निर्वतमान सांसद प्रिंस राज यह कहते फिर रहे हैं कि उन लोगों ने चिराग के प्रत्याशी को वोट दिया।लेकिन सुलगता सवाल यह है कि ऐसी परिस्थिति क्यों आयी कि उन्हें विभिन्न मंचों पर सफाई देनी पड़ रही है।
खैर!एलजेपी(रामविलास)से टिकट नहीं मिलने के कारण खगड़िया की पूर्व सांसद रेणु कुशवाहा ने भी अपने समर्थकों और अपने समाज के वोटरों को संजय कुशवाहा के पक्ष में वोट डालने के लिए काफी प्रेरित किया।लव-कुश समीकरण के जनक कहे जाने वाले पूर्व विधायक सतीश कुमार ने तो खगड़िया में कैंप कर एक तरह से चिराग के विरुद्ध हवा बहाने की भरपूर कोशिश की।वैसे बिहार के डिप्टी सीएम और खगड़िया से गहरे ताल्लुकात रखने वाले सम्राट चौधरी राजेश वर्मा के पक्ष में लगातार जनसभाएं कर कुशवाहा समाज को मंत्रमुग्ध करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़े।जीतन राम मांझी के सेनापति कहे जाने वाले संजय यादव ने भी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के वोटरों को संजय कुशवाहा के पक्ष में मोड़ दिया।
मुसहर जाति में बड़ा कद रखने वाले बोढ़न सदा और सज्जन सदा के साथ-साथ राजपूत जाति से आने वाले किसान नेता धीरेन्द्र सिंह टुड्डू ने भी संजय कुशवाहा को खगड़िया का बेटा बताकर उनका समर्थन किया।कांग्रेस के जिलाध्यक्ष भानु प्रताप उर्फ गुड्डू पासवान सहित कुछ अन्य प्रभावी लोगों ने पासवान वोटरों को संजय कुशवाहा के पक्ष में गोलबंद किया।2019के लोकसभा चुनाव में वीआईपी सुप्रीमो मुकेश सहनी को मल्लाह जाति का जितना वोट नहीं मिला था,उससे अधिक गोलबंदी मल्लाहों की इस बार संजय कुशवाहा के पक्ष में दिखी।
राजद जिलाध्यक्ष मनोहर कुमार यादव की सभी जातियों पर अच्छी पकड़ रहने का लाभ भी संजय कुशवाहा को मिल सकता है।मनोहर यादव अंदर ही अंदर अपने लिए विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं।इसीलिए उन्होंने अपनी राजनीतिक कौशल का भरपूर इस्तेमाल इस बार के लोकसभा चुनाव में किया।सबसे बड़ी बात यह कही जा रही है कि शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक द्वारा शिक्षकों को दिए जा रहे ‘दर्द’का भी कुप्रभाव इस बार के लोकसभा चुनाव के परिणाम पर पड़ सकता है।सिर्फ खगड़िया ही नहीं,पूरे बिहार के शिक्षकों ने एनडीए पर गुस्सा उतारने का मन बनाया है और स्थानीय होने के नाते बहुचर्चित शिक्षक नेता मनीष कुमार सिंह के आह्वान पर अधिकांश शिक्षकों ने एलजेपी (रामविलास)प्रत्याशी राजेश वर्मा के खिलाफ वोटिंग किया है।
खगड़िया की राजनीति के चाणक्य कहे जाने पूर्व विधायक रणवीर यादव और पूर्व लोकसभा प्रत्याशी कृष्णा कुमारी यादव भले ही फ्रंट पर नहीं आए।लेकिन उनके समर्थकों ने एलजेपी (रामविलास)प्रत्याशी राजेश वर्मा का काफी हद तक साथ दिया।वैसे रणवीर यादव और कृष्णा कुमारी यादव के फ्रंट पर नहीं आने के पीछे कई कहानियां सियासी जानकारों द्वारा सुनाई जा रही है।
एक समय विधानसभा के चुनाव में गीता यादव का विरोध किए जाने का आरोप लगाकर संजय यादव के प्रति नाराजगी प्रकट करने वाले कुछ यादव मतदाताओं द्वारा भी एलजेपी प्रत्याशी राजेश वर्मा का साथ दिए जाने की बात सियासी गलियारे में जुगाली कर रही है।कुल मिलाकर कह सकते हैं कि बाहरी और दागी प्रत्याशी बताकर एलजेपी (रामविलास)प्रत्याशी राजेश वर्मा को सभी समाज के लोगों ने भारी नुकसान तो पहुंचाया ही,राजनीति के नए खिलाड़ी होने के कारण राजेश वर्मा एनडीए के कोर वोटरों को भी अपने कलेजे से नहीं लगा पाए और वाजिब सम्मान नहीं मिलने के कारण एनडीए के घटक दलों के जमीनी नेता-कार्यकर्ताओं ने खुलेमन से उनका साथ भी नहीं दिया।ऐसे में मतगणना के बाद एनडीए में विरोध के स्वर भी सुनाई देने की आशंका प्रकट की जा रही है।
हालांकि सभी वर्गों में मोदी मैजिक का प्रभाव भी देखा गया,यह राजेश वर्मा के लिए मजबूत पक्ष कहा जा सकता है।ऐसी परिस्थिति में अभी यह कहना मुनासिब नहीं होगा कि कौन जीते और कौन-कौन हारे।लेकिन यह कहने में कहीं संकोच नहीं है कि खगड़िया लोकसभा क्षेत्र से पहली बार भाग्य आजमा रहे एलजेपी(रामविलास)प्रत्याशी राजेश वर्मा पर महागठबंधन समर्थित सीपीआईएम प्रत्याशी संजय कुमार कुशवाहा अगर भारी पड़ जाएं तो शायद किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।बहरहाल,आगामी चार जून को ईवीएम का पिटारा खुलने तक कयासबाजियों का दौर चलता रहेगा और सभी प्रत्याशियों के रणनीतिकार अपनी-अपनी रणनीति को सफल बताते हुए अपने-अपने प्रत्याशी की जीत का दावा करते रहेंगे।ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि आगामी चार जून को होता है क्या??