…और आरती के समय घंटा बजते ही दो पैरों पर खड़े होकर एक सुर में रोने की आवाज निकालने लगते हैं भैरव,तंत्र साधना के लिए विख्यात है योगिराज डॉ रामनाथ अघोरी बाबा आश्रम
खगड़िया।गंडक किनारे स्थापित योगिराज डॉ रामनाथ अघोरी बाबा आश्रम तंत्र साधना के लिए विख्यात रहा है।यहां दीपावली की रात माँ काली की पूजा के लिए तंत्र साधकों का जमघट तो लगता ही है,अन्य दिन भी तांत्रिकों की फौज देखने को मिलती है।योगिराज डॉ रामनाथ अघोरी बाबा आश्रम में प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी दीपावली की रात माँ काली की पूजा पूरे विधि विधान से की गयी।दीपावली की रात में यहां होनी वाली निशा पूजा में लोग श्रद्धा पूर्वक जुटे।अघोरी स्थान में माँ काली की पूजा के बाद दीपावली की रात में शिषकोहरा,बेल,ईख,नारियल के बाद बकरे की बली दी जाती है।सोमवार को शांतचित्त होकर लोग पूजा भाव में लगे थे।लेकिन झींगुर की आवाज शांत माहौल में खलल पैदा कर रही थी।बताया जाता है कि,आरती के समय घंटा बजते ही वहां सभी भैरव (कुत्ते)जमा हो जाते हैं और दो पैरों पर खड़े होकर एक सुर में रोने की आवाज निकालने लगते हैं।आरती शुरु होने से पहले आस-पास विचरण करने वाले सभी भैरव अघोरी स्थान परिसर में जमा हो जाते हैं।हालांकि अभी तक इस बात की व्याख्या नहीं की जा सकी है कि,प्रत्येक दिन अघोरी स्थान में इस तरह का नजारा आखिर क्यों देखने को मिलता है!तांत्रिक पूरे मनोयोग से साधना में लीन थे और कमोवेश इसी तरह का नजारा दिख रहा था।वहां मौजूद लोगों के रोंगटे खड़े हो रहे थे।
पूजा-अर्चना और तांत्रिकों की साधना पश्चात निर्वतमान वार्ड पार्षद रणवीर कुमार ने बताया कि,इस अघोरी स्थान में जो भी भक्त माँ काली से सच्चे मन के साथ मन्नत मांगते हैं,माँ काली निश्चित तौर पर पूरी करती हैं।उन्होंने बताया कि,पूर्वजों द्वारा कहा जाता रहा है कि, योगिराज डॉ रामनाथ अघोरी बाबा नेपाल राजा के राजपरोहित थे।जनकल्याण के लिए लिए जब वह नेपाल का राज दरबार छोड़कर नाव से निकले,तो खगड़िया के बलुआही घाट पर बाबा का नाव रुक गया।नाव पर ही माँ काली की काठ बनी मूर्ति थी।वह नाव पर ही माता की पूजा किया करते थे और विभिन्न कष्टों से पीड़ित आस-पास के जो लोग उनके पास जाते थे, उनका कष्ट बाबा दूर किया करते थे।इससे उनकी ख्याति धीरे-धीरे बढ़ने लगी।प्रभावित हुए स्थानीय लोगों ने न केवल मंदिर निर्माण के लिए जमीन में दान दिया,बल्कि चंदा भी दिया।उसी समय से यहां माँ काली की पूजा होती है।
बताया जाता है कि, लगभग पचास वर्षों से भी अधिक समय से इस अघोरी स्थान में पूजा होती आ रही है।रणवीर कुमार के मुताबिक पूर्वजों द्वारा कहा जाता था कि, योगिराज डॉ रामनाथ बाबा ने बिहार के खगड़िया, झारखंड के देवघर,बंगाल के कालीघाट सहित नेपाल के काठमांडू, जनकपुर धराण भूटान आदि में भी मंदिर का निर्माण कराया और श्रद्धालुओं द्वारा इन स्थानों में श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना की जाती है।
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