राजेश सिन्हा की रिपोर्ट
पूर्ण शराबबंदी के बाद भी बिहार में शराब का कारोबार कब तक होता रहेगा,यह तो शासन-प्रशासन ही जाने।लेकिन शराबबंदी के बाद युवा वर्ग जिस तरह शराब के साथ-साथ अन्य नशीली पदार्थों की बिक्री और सेवन में संलिप्त होते जा रहे हैं,वह समाज के लिए बेहद चिंता का विषय है।शराबबंदी के बाद शराब की बिक्री किस तरह घर-घर तक हो रही है,शायद यह किसी से छिपी नहीं है।आला अधिकारी भी इस बात से वाकिफ हैं कि, पुलिस और माफियाओं की मिलीभगत से शराब का कारोबार खूब उभार पा रहा है।बेरोजगारी के आलम में युवा वर्ग के लोग शराब के कारोबार में मस्त होते गए और स्थानीय पुलिस का संरक्षण मिलता गया।फलाफल यह है कि,शराब के कारोबार का नेटवर्क ध्वस्त करना शायद अब किसी के वश की बात नहीं रह गयी है।बात अलग है कि,बिहार के मुखिया नीतीश कुमार के दबाव में आलाधिकारियों के आदेश पर पुलिस की फौज गाहे-बिगाहे सड़कों पर निकलती है और कुछ शराबियों के साथ-साथ कुछ शराब कारोबारियों को गिरफ्त में लेकर पुलिस अपना कॉलर चमका लेती है।लेकिन यह कहने में कहीं संकोच नहीं है कि,शराब के कारोबार में संलिप्त बड़ी मछलियों का शिकार करने से पुलिस इसलिए परहेज करती है, क्योंकि पुलिस को बंधी-बंधाई मोटी रकम मिलती है।शराब पर प्रतिबंध के बाद विभिन्न थानाध्यक्ष की संपत्ति की अगर इमानदारी पूर्वक जांच हो,तो यह खुलासा होना तय है कि,थानाध्यक्षों ने कितनी काली कमाई अर्जित कर ली है।
स्थिति तो यह है कि,स्थानीय पुलिस और शराब कारोबार से जुड़े बड़े माफियाओं की जिसने भी पोल खोलने की ज़ुर्रत की उसमें से अधिकांश लोग या तो मौत के घाट उतार दिए गए अथवा उन्हें स्थानीय पुलिस और शराब माफियाओं की मिलीभगत से झूठे मामले में फंसाकर तंग तबाह कर दिया गया और किया ही जा रहा है।हालात इतने खराब हैं कि,पुलिस और शराब माफियाओं के खिलाफ मुंह खोलने वालों के विरुद्ध फर्जी मुकदमे लाद दिए गए और सुपरविजन करने वाले पुलिस पदाधिकारियों ने झूठे केस को भी सत्य करार दे दिया।यहां तक कि,अगर किसी मामले को ले मारपीट हुई और उस मामले में डॉक्टर द्वारा दिए गए जख्म प्रतिवेदन में जख्म को मामूली करार दिया गया,तो पैसे की खनक कहें,या वर्दी का रौब इंस्पेक्टर स्तर के पदाधिकारी ने डॉक्टर के जख्म प्रतिवेदन को गायब कर दिया और टेबल पर बैठे बैठे सुपरविजन लिखकर निर्दोषों को जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया।अन्य जगहों की बातों को छोड़िए, खगड़िया में ही इस तरह के मामले भरे-पड़े हैं।शराब सहित इस तरह के मामलों को कुछ देर के लिए दरकिनार कर अगर स्मैक,चरस, अफीम,डोडा सहित नशे की अन्य मादक पदार्थों की बिक्री पर अगर गौर फरमाएं,तो यह कहने में कहीं कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि, नशे के सौदागरों ने कम से कम बिहार के नौजवानों को बर्बाद ही कर दिया है।विभिन्न जगहों पर स्मैक का कारोबार फलफूल तो रहा ही है,चरस, डोडा सहित नशे की सुई और टेबलेट के कारोबारियों ने बाजार में अपना पांव पसार लिया है।खगड़िया जिला भी अब धीरे-धीरे इसका गढ़ बनने लगा है।बात अगर अररिया की करें,तो डोडा के साथ चार कारोबारियों को गिरफ्तार कर पुलिस पूरे मामले को खंगाल ही रही थी कि,फारबिसगंज एसडीपीओ शुभांक मिश्रा के नेतृत्व में फारबिसगंज थाना पुलिस ने एक नेपाली महिला सहित दो दवा दुकानदारों को नशीली दवाइयों और इंजेक्शन का अवैध कारोबार करने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया है।पुलिस गिरफ्त में ली गई नेपाली महिला और रोजी मेडिकल हॉल के दो स्टाफों के पास से भारी मात्रा में नशीली सुइयों और उसके रैपर को बरामद किया गया है।बरामद की गई नशीली इंजेक्शन की कीमत 50 हजार रुपये से अधिक बताए जा रहे हैं।नशीली सुइयों के साथ-साथ खाली रैपर और स्टिकर बरामद कर पुलिस यह जानने की कोशिश कर रही है कि, समाज को बर्बाद कर देने वाले इस गोरखधंधे के मुख्य सरगना कौन हैं!हालांकि यह भी तय है कि,मुख्य सरगना तक पहुंचने के पहले ही यह मामला दफन हो जाएगा और फिर कोई दूसरा मामला सामने आ जाएगा।
वैसे,फारबिसगंज एसडीपीओ शुभांक मिश्रा ने पूरे मामले को लेकर बताया है कि,सुभाष चौक के समीप से गिरफ्तार की गई नेपाल के रानी बिराटनगर निवासी सुमित साह की पत्नी शीला देवी के पास से बरामद तीन झोले से नशे के लिए इस्तेमाल की जाने वाली इंजेक्शन के साथ खाली रैपर और अन्य आपत्तिजनक सामान बरामद किए गए हैं।महिला की स्वीकारोक्ति बयान के बाद सदर रोड स्थित रोजी मेडिकल हॉल के स्टाफ फारबिसगंज वार्ड संख्या-5 निवासी उदयचंद गोस्वामी के पुत्र मुकेश कुमार तथा वार्ड संख्या 18 दल्लू टोला निवासी मोहम्मद वजीर के पुत्र शहनवाज को गिरफ्तार किया गया।दोनों लड़कों के पास से भी भारी मात्रा में नशीली सुई और रैपर बरामद किए गए हैं।गिरफ्तार की गई महिला ने बताया कि,पुलिस गिरफ्त में आए दोनों युवकों ने ही बरामद इंजेक्शन को जोगबनी पहुंचाने के लिए उसे दिया था।इधर,फारबिसगंज थाना पहुंचे ड्रग इंस्पेक्टर राजेश कुमार सिन्हा ने बरामद नशीले इंजेक्शन की कीमत लगभग 50 हजार रुपये बताया है।बहरहाल,पुलिस पूरे मामले में खंगालने में जुटी है और पूरे नेटवर्क को खंगालने की कोशिश कर रही है।इस बीच सुलगता सवाल अपनी जगह कायम है कि,शराब के साथ साथ अन्य नशीली पदार्थों के सेवन का आदि हो चुके खासकर बिहार के नौजवानों की जिंदगी आखिर कौन संवारेगा!!