राजेश सिन्हा की रिपोर्ट
पटना।पूर्ण शराबबंदी के बाद भी बिहार में शराब के कारोबार पर ग्रहण नहीं लग पा रहा है।स्थिति यह है कि, पूर्ण शराबबंदी वाले इस बिहार में प्रत्येक साल जहरीली शराब पीकर लोग मर रहे हैं।हाल ही छपरा में जहरीली शराब पीकर सौ से अधिक लोगों की जान चली गई।वैसे सरकारी तौर पर 77 लोगों के मरने की बात कही जा रही है।हालांकि अन्य जिलों से भी जहरीली शराब पीकर लोगों के मरने की बात समय-समय पर सामने आती रही है।शराबबंदी की सफलता और असफलता को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच रोज घमासान होता रहा है।राजद जब विपक्ष में थी,तब वह नीतीश सरकार पर हमलावर रहती थी।उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भले ही आज की तिथि में शराबबंदी को जायज करार दे रहे हों,लेकिन जब तक नेता प्रतिपक्ष रहे,नीतीश सरकार की बखिया उधेड़ते रहे।राजद के ही नेता स्ट्रिंग ऑपरेशन में कह चुके हैं कि,तेजस्वी भी चाहते हैं कि,जल्द से जल्द शराबबंदी कानून खत्म हो।लेकिन वह सीएम नीतीश को आमने-सामने कुछ कह नहीं पाते हैं।खैर!अब भाजपा विपक्ष में है,तो भाजपा ने शराब के नाम पर नीतीश के नाक में दम कर रखा है।एक तरफ अपरोक्ष रुप से विपक्ष की कौन कहे,सत्ता पक्ष के भी नेता शराबबंदी कानून को खत्म कराना चाहते हैं,वहीं कभी बिहार के मुखिया नीतीश कुमार के राजनीतिक सलाहकार रहे प्रशांत कुमार भी शराबबंदी कानून को हर हाल में खत्म कराना चाहते हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री और हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा सुप्रीमो जीतन राम मांझी तो समय-समय पर लोगों को ‘थोड़ी-थोड़ी पिया करो’की सलाह देते रहे हैं।शराब को लेकर गुजरात के नियम-कानून को बिहार में भी लागू करने की नसीहत श्री मांझी नीतीश कुमार को देते रहे हैं।बावजूद इसके शराबबंदी के नाम पर चौतरफा घिरते रहे बिहार के मुखिया नीतीश कुमार शराबबंदी कानून को खत्म करने के पक्ष में नहीं है।
शराबबंदी को सफल बनाने के लिए अक्सर कोई न कोई नीति बनाते रहते हैं।यह जानते हुए भी कि,बिहार में कुछ लोग अवैध रुप से न केवल शराब बनाते हैं,बल्कि तस्करी भी करते हैं।
छपरा में घटित घटना के बाद शराबबंदी को लेकर चौकन्ना हुए नीतीश कुमार ने तमाम अधिकारियों के नाम शराबबंदी को गंभीरता से लेने का निर्देश जारी किया है।सीएम ने हर उस कड़ी पर वार करने की हिदायत दी है, जिसकी कड़ियां जहरीली शराब के निर्माण से जुडी हों।बिहार के मुखिया नीतीश कुमार के निर्देश पर शराबबंदी को सफल बनाने को लेकर एक बार फिर मद्य निषेध विभाग की सक्रियता बढ़ी है।कुछ नए नियम बनाने को भी लेकर निर्देश जारी किए गए हैं।लेकिन जिस तरह से राज्य के होम्योपैथी से जुड़े डॉक्टरों और दवाखानों पर नकेल कसने के निर्देश दिए गए हैं,वह होम्योपैथी से जुड़े डॉक्टरों के लिए चिंता का विषय है।
बताया जा रहा है कि,जहरीली शराब बनाने में जिस केमिकल का इस्तेमाल होता है,उस केमिकल या स्प्रिट का उपयोग होम्योपैथी दवाओं के भी निर्माण में होता है।दरअसल,छपरा शराबकांड मामले में पुलिस का दावा है कि,जहरीली शराब बनाने में जिस स्प्रिट का उपयोग हुआ, वह होम्योपैथी दवा से जुड़े कराबोरियों से लिया गया था।इस तरह की बातें सामने आने के बाद मद्य निषेध विभाग ने अब इसी पर चोट करने की योजना तैयार कर ली है।
अपर मुख्य सचिव केके पाठक की तरफ से राज्य के सभी डीएम के नाम निर्देश भी जारी किए गए हैं।जारी निर्देश में कहा गया है कि,शराबबंदी की समीक्षा बैठक में संबंधित औषधि निरीक्षकों को आमंत्रित कर समीक्षा की जाए।इतना ही नहीं,उनसे यह भी डाटा लिया जाए कि, उन्होंने कितनी दुकानों खासकर आयुर्वेदिक व होम्योपैथी दुकानों का निरीक्षण और स्टाक मिलान किया।इसके साथ ही यह भी कहा जाय कि,ऐसे सभी होम्योपैथ आयुर्वेद चिकित्सकों की सूची आपके पास उपलब्ध रहनी चाहिए, जो अपने क्लिनिक में स्प्रिट इत्यादि रखते हैं।यहां यह बताना जरुरी है कि,होम्योपैथी दवा बनाने के लिए उपयोग होने वाले स्प्रिट का आयात देश के अन्य राज्यों से बिहार में होता है।
ऐसी स्थिति में राज्य में भी एक जगह से दूसरी जगह स्प्रिट ले जाना बेहद आसान होता है।इसी का बड़ा फायदा शराब तस्कर उठाते हैं और वह शराब निर्माण के लिए स्प्रिट का इस्तेमाल करते हैं।
यही कारण है कि,मद्य निषेध विभाग ने अब होम्योपैथी कारोबार से जुड़े लोगों के स्टॉक मिलान का पूरा विवरण जानने को कहा है।जानकारों की बातों पर अगर भरोसा करें,तो विभाग का मानना है कि,शराब तस्कर होम्योपैथी दवाखानों से ही स्प्रिट खरीदते हैं।यह भी तय है कि,इस आदेश से बिहार के होम्योपैथी डॉक्टरों की परेशानी बढ़ सकती है।सख्तियों के कारण अगर स्प्रिट का आयात प्रभावित हुआ,तो होम्योपैथी दवाओं को तैयार करने में परेशानी होना तय है।होम्योपैथी से जुड़े कारोबार में संलग्न लोगों को इस बात का भय है कि, पुलिस-प्रशासन से उन्हें बेवजह उलझना पड़ सकता है।वैसे यह कहने में कहीं संकोच नहीं है कि,भले ही होम्योपैथी से जुड़े लोगों को विभागीय सख्ती के कारण परेशानी हो,विभिन्न दलीय और गैर दलीय नेता शराबबंदी कानून को खत्म करने की परोक्ष तौर पर न सही,अपरोक्ष रुप से ही खत्म करने की बात करते हों,लेकिन शराबबंदी का कुछ न कुछ असर तो बिहार में जरुर है।
शराबबंदी के बाद अधिसंख्य शराबी शराब जरुर पी रहे हैं,लेकिन सड़कों पर हो हल्ला नहीं के बराबर हो रहा है।बात अलग है कि,जो शराब पीकर पैजामे से बाहर निकल रहे हैं,उन्हें न्यायिक हिरासत में जाना पड़ रहा है।ऐसी परिस्थिति में शराबबंदी कानून को किसी भी कीमत पर गलत करार नहीं दिया जा सकता।हालांकि यह कहने में कहीं गुरेज नहीं है कि,शराबबंदी कानून लागू किए जाने के पहले लोगों के बीच व्यापक तौर पर जागरुकता पैदा करना चाहिए था।