एसडीएफ लाइव इंडिया
खगड़िया।जिला मुख्यालय के कृष्णापुरी बलुआही स्थित राजद कार्यालय में आज 23 मार्च को पूर्व नगर सभापति सह पूर्व राजद एमएलसी प्रत्याशी मनोहर कुमार यादव के नेतृत्व में देश की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले महान क्रांतिकारी नेताओं को याद किया गया।देश की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले महान क्रांतिकारी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया की जयंती मनाई गई और देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने वाले देश के तीन क्रांतिकारी सपूतों की पुण्यतिथि शहीद दिवस के रुप में मनाते हुए उन्हें नमन किया गया।राजद आपदा प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष प्रमोद यादव,सदर प्रखंड अध्यक्ष सुनील चौरसिया, एससी/एसटी प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष किशोर दास,पूर्व वार्ड पार्षद रणवीर कुमार,पूर्व पंचायत समिति सदस्य चंदन पासवान,पंचायत अध्यक्ष चन्देश्वरी तांती,राजद नेता गणेश शर्मा,नंदलाल राय, नंदकिशोर यादव,आमिर खान,वंशीधर पासवान,छात्र राजद नेता रौशन कुमार ने शहीद के तैल्य चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें नमन किया।
पूर्व नगर सभापति मनोहर कुमार यादव ने कहा कि डॉ राममनोहर लोहिया का जन्म आज के ही दिन 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिला में हुआ था।उनके पिताजी पेशे से अध्यापक व हृदय से सच्चे राष्ट्रभक्त थे।ढ़ाई वर्ष की आयु में ही उनकी माताजी चन्दा देवी का देहान्त हो गया था।उन्हें दादी के अलावा सरयूदेई, परिवार की नाईन ने पाला।उनके पिताजी गांधीजी के
अनुआई थे।जब वे गांधीजी से मिलने जाते तो राम मनोहर को भी अपने साथ ले जाया करते थे।इसके कारण गांधीजी के विराट व्यक्तित्व का उन पर गहरा असर हुआ।वह पिताजी के साथ 1918 में अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार शामिल हुए।स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के राजनेताओं में लोहिया मौलिक विचारक थे।लोहिया के मन में भारतीय गणतंत्र को लेकर ठेठ देसी सोच थी।अपने इतिहास व अपनी भाषा के सन्दर्भ में वे कतई पश्चिम से कोई सिद्धांत उधार लेकर व्याख्या करने को राजी नहीं थे।सन् 1932 में जर्मनी से पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने वाले राममनोहर लोहिया ने साठ के दशक में देश से अंग्रेजी हटाने का आह्वान किया।अंग्रेजी हटाओ आन्दोलन की गणना अब तक के कुछ इने गिने आंदोलनों में की जा सकती है।उनके लिए स्वभाषा राजनीति का मुद्दा नहीं बल्कि अपने स्वाभिमान का प्रश्न और लाखों-करोडों को हीन ग्रंथि से उबरकर आत्मविश्वास से भर देने का स्वप्न था।उन्होंने कहा था कि ‘मैं चाहूंगा कि हिंदुस्तान के साधारण लोग अपने अंग्रेजी के अज्ञान पर लजाएं नहीं, बल्कि गर्व करें।इस सामंती भाषा को उन्हीं के लिए छोड़ दें,जिनके मां बाप अगर शरीर से नहीं तो आत्मा से अंग्रेज रहे हैं।’
श्री यादव ने कहा कि शिवरात्रि पर चित्रकूट में रामायण मेला उन्हीं की संकल्पना थी,जो सौभाग्य से अभी तक अनवरत चला आ रहा है।आज भी जब चित्रकूट के उस मेले में हजारों भारतवासियों की भीड़ स्वयमेव जुटती है तो लगता है कि ये ही हैं,जिनकी चिंता लोहिया को थी,लेकिन आज इनकी चिंता करने के लिए लोहिया के लोग कहां हैं?
राजद सदर प्रखंड अध्यक्ष सुनील चौरसिया ने कहा कि लोहिया जी की जयंती के तिथि को देश की आजादी के लिए तीन युवा जिनका उम्र मात्र 22 और 23 वर्ष था।भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव ब्रिटिश राज के खिलाफ थे और भारत को स्वतंत्र कराना चाहते थे।लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए तीनों ने विद्रोह करने की ठानी।तीनों को ब्रिटिश सरकार ने अलग-अलग मामलों के तहत गिरफ्तार किया।जिसमें ब्रिटिश पुलिस अफसर जोह्न सोंडर्स की हत्या का इल्जाम भी शामिल था।असल में सर जोह्न साइमन के लाहौर आने के बाद लाला लाजपत राय ने ‘साइमन गो बैक’स्लोगन के साथ शांतिपूर्ण धरना करना शुरू किया था।इस पर जेम्स स्कोट के आदेश पर पुलिस ने लाठी चार्ज किया,जिसमें घायल होने पर लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई।
लाला लाजपत राय की मृत्यु के बाद ही तीनों ने जेम्स स्कॉट की हत्या की साजिश रची।
लेकिन पुलिस अफसर जोह्न सोंडर्स की हत्या हो गई।इसके अलावा भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ब्रिटिशकालीन केंद्रीय विधानसभा पर हमले का प्लान बना रहे थे,जो पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट एक्ट के खिलाफ था।बम फोड़ने की योजना 8 अप्रैल, 1929 के दिन निर्धारित की गई।जिसमें तीनों को गिरफ्त में ले लिया गया और आज से 92 साल पहले 23 मार्च, 1931 में फांसी के फंदे पर लटकाया गया।