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राजेश सिन्हा की रिपोर्ट
नीतीश सरकार में शामिल हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा तथा विकासशील इंसान पार्टी के मुखिया रह-रहकर सरकार की नीतियों का विरोध कर राजनीतिक हलचल तो तेज कर ही देते हैं,विपक्षियों को राजनीतिक हथियार भी देने से बाज नहीं आते हैं।नतीजतन कभी-कभी लगने लगता है,कि बिहार में कहीं बदल न जाय राजनीतिक फिजां।ऐसा मेरा नहीं,अपितु राजनीति को करीब से जानने समझने वाले लोगों का कहना है। ‘हम’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी और वीआईपी सुप्रीमों मुकेश सहनी की वास्तविक मंशा क्या है,यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा!लेकिन राजनीतिक पंडितों का मानना है कि राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद के जेल से बाहर आने के बाद राजनीतिक हलचल बढ़ गई है और कभी भी बड़ी राजनीतिक घटनाक्रम सामने आ सकती है।इस दूसरे कोरोना काल के पहले की बातों को दरकिनार कर अगर हालिया बयानों की बात करें,तो हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के सर्वेसर्वा जीतन राम मांझी ने बेरोजगार युवाओं को पांच-पांच हजार देने की मांग उठाकर बड़ा पासा फेंक दिया है।जीतनराम मांझी की इस मांग से सरकार इसलिए भी सकते में आ गई है,क्योंकि विपक्ष को बैठे-बिठाए इस कोरोना काल में अब नया मुद्दा हाथ लग गया है।स्थिति यह बन गई है कि सरकार अगर मांझी की बातों पर गौर नहीं करेगी,तो बिहार के मुखिया नीतीश कुमार के लिए जवाब देना मुश्किल हो जाएगा।इसके पहले भी कोरोना काल में ही जीतन राम मांझी द्वारा कई मुद्दों को उछालकर सरकार को अपनी पार्टी द्वारा किए गए वायदे याद दिलाए जाते रहे हैं। जीतन राम मांझी ने बीते ट्वीट कर कहा कि वित्तीय संकट से जूझ रहे हमारे बेरोजगार युवक-युवतियों के लिए उनकी पार्टी ‘हम’ ने चुनावी घोषणा पत्र में वादा किया था,कि अगर हमारी सरकार बनी तो उन्हें 5000 रुपये बेरोजगारी भत्ता दिए जाएंगे।उन्होंने ट्वीट के जरिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अनुरोध करते हुए कहा कि सूबे के बेरोजगार युवक/ युवतियों को 5000 रुपये बेरोजगारी भत्ता दें। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अगर सरकार से सीधी बात करते तो कोई राजनीतिक मायने नहीं निकाला जाता।लेकिन उन्होंने सरकार से सीधी बात करने के बजाय मीडिया में इस बात को उछालकर सरकार को सकते में डाल दिया है।राजनीति को करीब से समझने वाले लोग मांझी की इस मांग को राजद सुप्रीमो लालू की रिहाई का असर बता रहे हैं।कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि नीतीश सरकार को जोर का झटका धीरे से देने में माहिर राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद ने अपनी चाल चलनी शुरु कर दी है।कुछ लोगों द्वारा तो यह भी कयास लगाया जा रहा है कि मांझी जी कहीं लालू के प्लान का हिस्सा तो नहीं हैं!ऐसा इसलिए भी कि मांझी की ओर से यह मांग ऐसे समय में उठाई गई है, जिस समय हर कोई कोरोना महामारी के कहर का सामना कर रहा है। — कुल मिलाकर यह कहने में शायद कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इस कोरोना काल में कुव्यवस्थाओं को लेकर चौतरफा घिरती रही नीतीश सरकार के सामने सभी युवक -युवतियों को हर महीने पांच हजार रुपए देने की मांग कर मांझी ने सरकार को पसीना पोंछने पर विवश कर दिया है।हालांकि यह पहला मौका नहीं है,जब मांझी ने इस तरह की बातें मीडिया के समक्ष रखकर सरकार को पेशोपेश में डाला हो।इसके पहले सूबे बिहार में लॉकडाउन लगाने के फैसले पर भी गरीबों के हितों की बात उठाकर उन्होंने सरकार को काफी कुछ सोचने के लिए विवश कर दिया था।गरीबों के हित की बात उठाकर उन्होंने सरकार को यह बताने का प्रयास किया था सरकार के रुख से अलग उनकी राय है। बीते दिनों मधेपुरा के पूर्व सांसद सह जाप सुप्रीमों राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के पक्ष में गीत गुन-गुनाकर उनकी गिरफ्तारी के सवाल पर कड़ा एतराज भी जीतन राम मांझी ने जताया था। — वैसे भी मांझी के हालिया बयान एवं रुखों पर अगर गौर फरमाएं तो वह नीतीश कुमार से खासे खुश नजर नहीं आ रहे है।अंदरखाने से यह भी बात छनकर सामने आ रही है कि मांझी को नीतीश सरकार में अच्छा-खासा भाव फिलवक्क नहीं मिल पा रहा है।वास्तविक कारण क्या है, यह स्पष्ट तौर पर कहना तो मुश्किल है।लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि इस मसले पर बीजेपी और जद(यू) की क्या प्रतिक्रिया आती है! — बात अगर वीआईपी के मुखिया व बिहार सरकार के मंत्री मुकेश सहनी की करें, तो बीते दिनों पप्पू यादव की गिरफ्तारी का उन्होंने भी करारा विरोध कर यह जता दिया था कि वह भी सरकारी कामकाज से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है।एमएलसी प्रकरण के दौरान उनके द्वारा कही गई बातें सरकार को पहले ही चूभी थी।बात अलग है कि चाहे जीतन मांझी हों या मंत्री मुकेश सहनी फिलवक्त पूरी तरह बगावत के मुद्रा में नहीं दिख रहे हैं।