एक तरफ जहां संस्कृत को देववाणी कहा जाता है,वहीं दूसरी तरफ आज के भारत में संस्कृत विलुप्त होते जा रहा है।जिस प्रकार आज के बच्चे एवं शिक्षक व अभिभावकों में संस्कृत भाषा के प्रति अभिरुचि समाप्त हो रही है, उसी तरह हमारे देश की संस्कृति भी समाप्त होती जा रही है।संस्कृत भाषा के बगैर संस्कृति को बचाना संभव नहीं है।उक्त बातें पूर्व प्रधानाचार्य शंकर शर्मा ने उपस्थित शिक्षकों को संबोधित करते हुए कही।मध्य विद्यालय हाजीपुर उत्तरी के सभागार में रविवार को संस्कृत भाषा के उत्थान हेतु इस भाषा के विद्वान शिक्षकों की एक बैठक आयोजित की गई थी।मेहसौढ़ी उच्च विद्यालय के प्रधानाचार्य शंकर शर्मा की अध्यक्षता में आयोजित इस बैठक का संचालन युवा शक्ति के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नागेंद्र सिंह त्यागी ने किया।
बैठक में शिक्षकों द्वारा बच्चे एवं उसके अभिभावकों में संस्कृत भाषा के प्रति उदासीनता को उत्साह में कैसे बदला जाय,इस पर विस्तार से चर्चा की गई।राष्ट्रीय स्तर के पत्रकार श्री चंद्रशेखरम ने कहा कि,विश्व शोध संस्थान नासा द्वारा बताया गया कि, विश्व के छह हजार भाषाओं में मात्र संस्कृत ही प्राकृत भाषा है।बांकी सभी कृत्रिम भाषा है।इसलिए संस्कृत को खासकर हिंदुस्तान में बचाने की आवश्यकता है।पूर्व प्रधानाचार्य अमरनाथ झा ने कहा कि,बच्चे के मन में संस्कृत को भारी और बोझिल बना दिया गया है।जबकि संस्कृत अन्य सभी भाषाओं से काफी आसान भाषा है।अवध बिहारी संस्कृत महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. उमेश प्रसाद सिंह ने कहा कि,जो खगड़िया कल की तारीख में संस्कृत भाषा की फैक्ट्री हुआ करता था,वही खगड़िया आज इस भाषा की प्रगति के नाम पर भिखारी बना हुआ है।उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि, यदि आज भी संस्कृत उच्च विद्यालय एवं महाविद्यालय रहीमपुर को जिंदा कर दिया जाय,तो खगड़िया के छात्र पूरे देश में संस्कृत भाषा का पताका लहरा सकते हैं।
बैठक को संबोधित करते हुए भदास उच्च विद्यालय के पूर्व प्रधानाचार्य मिथिलेश प्रसाद सिंह,सेवानिवृत्त शिक्षक राजेंद्र प्रसाद सिंह,पूर्व प्रधानाचार्य बैकुंठ चौधरी,शिक्षक मनोज देव,मध्य विद्यालय हाजीपुर उत्तरी के प्रधानाचार्य जय कुमार सिंह एवं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के महामंत्री भरत सिंह जोशी ने संस्कृत भाषा के विकास एवं बच्चों में संस्कृत के प्रति जागृति हेतु निम्नांकित बिंदु पर जोर दिया।उन्होंने कहा कि,सरकार द्वारा वर्ग चार से ही संस्कृत को अनिवार्य करना चाहिए।इसे भारत के सभी बोर्ड में लागू किया जाय।संस्कृत को मैट्रिक परीक्षा में अनिवार्य विषय किया जाय।संस्कृत में फेल छात्र-छात्राओं को सभी विषयों में फेल किया जाय।संस्कृत को बच्चे के भविष्य अर्थात कैरियर में प्राथमिकता दी जाय। बच्चे में विश्वास हो कि,संस्कृत भाषा पढ़ने वाले बच्चे बेरोजगार नहीं रहेंगे।उन्होंने बैठक के माध्यम से वैदिक रीति रिवाज से शादी करने वाले अभिभावकों से आह्वान किया कि,अपने बच्चे की शादी किसी विद्वान पंडित से ही कराएं।इतना ही नहीं,शुभ मुहूर्त और लग्न में ही शादी कराएं।अल्प ज्ञान वाले पंडित द्वारा धीरे-धीरे शादी का समय जितना कम किया जा रहा है, उतनी ही शादी के बंधन में बंधे जोड़े की गांठ भी कम पड़ती जा रही है।आज के बच्चे की शादी तलाक में तब्दील होने के,तो कई कारण हो सकते हैं।लेकिन अज्ञानी पंडित द्वारा मंत्र का गलत उच्चारण और गलत समय भी महत्वपूर्ण कारण है।
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