राजेश सिन्हा की रिपोर्ट
पुलिस राज्य मुख्यालय द्वारा एक तरफ जहां पुलिस-पब्लिक के बीच तारतम्य स्थापित करने को लेकर तमाम तरह के जुगत लगाए जा रहे हैं।कानून व अमन पसंद लोगों के मन मस्तिष्क से पुलिस का भय निकालकर दोस्ती में मिठास भरने की कोशिश की जा रही है।पिछले दिनों बिहार पुलिस दिवस को बिहार पुलिस दिवस सप्ताह के तौर पर मनाते हुए जांबाज पुलिस पदाधिकारियों को ऐसा करते लोगों ने देखा भी है।
लेकिन कुछ पुलिस पदाधिकारी ऐसे भी हैं,जो चंद रुपये के लोभ, प्रभाव और स्वार्थ में वशीभूत होकर अमन पसंद लोगों को तंग तबाह करने से बाज भी नहीं आ रहे हैं।ऐसे कुछ अन्य पुलिस पदाधिकारियों की करतूतों को कुछ देर के लिए नजरअंदाज कर अगर हम खगड़िया सदर इंस्पेक्टर पवन कुमार सिंह की बात करें,तो इनके कारनाने जानकर आप दांतों तले अपनी उंगली दबाने को विवश हो जाएंगे।
वैसे तो इनके कारनामे की फेहरिश्त बहुत लंबी है,जो किश्तों में आप तक पहुंचाता रहूंगा।दर्जनों निर्दोष लोगों को इन्होंने जेल तक का सफर करवाया है।
लेकिन अन्य मामलों को कुछ देर के लिए दरकिनार कर हम तत्काल एक केस (चित्रगुप्तनगर थाना कांड संख्या-947/20दिनांक15. 12.20)की बात करें,तो पूरी कहानी जानकर यह सवाल जरुर उठेगा कि,पुलिस इंस्पेक्टर पवन कुमार सिंह इंस्पेक्टर तो हैं ही,क्या डॉक्टर और ज्योतिष भी हैं!अगर डॉक्टर और ज्योतिष नहीं हैं,तो डॉक्टर और ज्योतिष की भूमिका इन्होंने निभाई कैसे!
दरअसल,चित्रगुप्तनगर थाना अंतर्गत टीचर्स कॉलोनी निवासी सुभाष चन्द्र गुप्ता के पुत्र शोभित सौरभ ने बीते वर्ष 2020के 15दिसम्बर को गौरव कुमार,सौरभ कुमार तथा प्रितम कुमार के विरुद्ध गाली गलौज करते हुए जान मारने की नियत से लाठी डंडे एवं लोहे के रॉड से मारपीट कर जख्मी कर देने तथा पॉकेट से 2500रुपये के साथ-साथ गले से हनुमान जी की चकती निकाल लेने का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी (चित्रगुप्तनगर थाना कांड संख्या-947/20)दर्ज कराया।
घटनास्थल रेडकॉस के सामने पक्की सड़क दिखाते हुए यह भी कहा कि,गौरव कुमार ने पॉकेट से मोबाइल निकालकर सड़क पर पटक दिया।जिससे उसका मोबाइल टूट गया।इस केस के अनुसंधानकर्ता बनाए गए दिगम्बर सिंह ने जब अनुसंधान शुरु किया,तो वादी शोभित सौरभ ने कहा कि,टेंपू से चोट लगी और सिर फूट गया।
फिर वादी के पिता द्वारा अनुसंधान कर्ता के सामने ही दबाव बनाने पर उसने प्राथमिकी का समर्थन किया।यह बात भी अनुसंधान रिपोर्ट में दर्ज है।खैर!वादी के द्वारा बताए गए गवाहों से जब अनुसंधान कर्ता ने बयान लिया,तो सभी के बयान अलग-अलग थे।लेकिन किसी ने भी पिस्टल,लाठी-डंडे या लोहे के रॉड से सुमित सौरभ पर वार करने की बात कतई नहीं कही और न ही किसी ने उसके पॉकेट से रुपये या गले से चकती लेने की बात को स्वीकारा।गवाहों के बयान को आधार बनाकर अनुसंधान कर्ता ने अपने लिहाज से अनुसंधान रिपोर्ट में केस को मामूली तो बताया ही,सदर अस्पताल के चिकित्सक ने भी जख्म प्रतिवेदन में जख्म को साधारण प्रकृति का होना बताया।
अब यहां से सदर पुलिस इंस्पेक्टर पवन कुमार सिंह का खेल शुरु हो गया।पैसे और प्रभाव में आकर कहें या कुछ और…उन्होंने अनुसंधान कर्ता के अनुसंधान रिपोर्ट के साथ-साथ डॉक्टर द्वारा दिए गए जख्म प्रतिवेदन को दरकिनार कर और कानून को ताक पर रखकर वह सब कुछ अपने सुपरविजन रिपोर्ट में लिख दिया,जो सूचक के पिता चाहते थे।अनुसंधानकर्ता और जख्म प्रतिवेदन चीख-चीख कह रहा है कि,इस केस में दफा 307 का समावेश नहीं होना चाहिए।लेकिन पुलिस इंस्पेक्टर ने वादी के पिता द्वारा दिए गए गवाहों के नाम का उल्लेख करते हुए केस को गंभीर प्रकृति का करार दे दिया।जबकि किसी भी गवाह को इस घटना की जानकारी तक नहीं नहीं है।यहां तक कि,उन्हें यह भी पता नहीं है कि,पुलिस इंस्पेक्टर ने गवाह के तौर पर उनका नाम कैसे अंकित कर दिया।पुलिस इंस्पेक्टर का मन यहां भी नहीं भरा।उन्होंने अपनी करतूत को छिपाने के लिए डॉक्टर द्वारा दिए गए जख़्म प्रतिवेदन को छुपाकर रखवा दिया।हद तो यह कि,आरोपियों को बेल नहीं मिले,इसके लिए उन्होंने वह सब किया,जो एक एक इमानदार पुलिस पदाधिकारी को कदापि नहीं करना चाहिए।कोर्ट द्वारा डायरी की मांग किए जाने पर केस के अनुसंधानकर्ता द्वारा डायरी तो समर्पित किया जाता रहा, लेकिन जख्म प्रतिवेदन को कोर्ट की नजरों से ओझल रखा गया।अनुसंधान कर्ता से पूछने पर उनके द्वारा कहा जाता रहा कि,कुछ दबाव के कारण वह कोर्ट में जख्म प्रतिवेदन समर्पित नहीं कर रहे हैं।जब दिखाने को कहा गया,तो उन्होंने कहा कि,ऐसा नियम है।बात अलग है कि, कुछ दिनों पूर्व किसी तरह जख्म प्रतिवेदन हाथ लग गया।
हास्यास्पद स्थिति यह है कि, जब हमने पुलिस इंस्पेक्टर से कुछ दिनों पूर्व आम आदमी के तौर पर इस केस के संदर्भ में मोबाइल पर बात किया,तो उन्होंने अपनी गलतियों को स्वीकारा और कहा कि, गलतियां हुई है तो सुधार अवश्य होगा।मामले को उछालने की जरुरत नहीं है।पुलिस इंस्पेक्टर के साथ हुई बातचीत का पूरा ऑडियो हमारे पास है।पुलिस इंस्पेक्टर ने अपनी गलतियां स्वीकार करते हुए यह तो कह दिया कि,गलतियां हुई है तो सुधार अवश्य होगा।
लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि,जिन बेगुनाह बच्चों ने बिना जुर्म किए जो सजा भुगती,उसकी भरपाई क्या संभव है!इन तमाम बातों के बाद भी यह दावा है कि,पूरे मामले की इमानदार जांच करने के लिए अगर घटना के दिन का मोबाइल लोकेशन वादी और प्रतिवादियों का निकाल लिया जाय,तो यह आइने की तरह साफ हो जाएगा कि,जिस घटना के आधार पर प्राथमिकी दर्ज हुई,वह प्रा़योजित था।
क्रमश: