राजेश सिन्हा की रिपोर्ट
लोकसभा 2024 का नगाड़ा तो फिलवक्त नहीं बजा है,लेकिन कम से कम बिहार में विभिन्न पार्टियों के द्वारा चुनावी बिसात बिछायी जाने लगी है।लगभग सभी पार्टियां अपने- अपने अंदाज में चुनावी प्लेटफॉर्म सजाने नें लगी है।कोई पार्टी रैली कर मतदाताओं का मन टटोलने और उन्हें रिझाने नें लगी है तो कोई पार्टी मंहगाई और बेरोजगारी भगाने का सब्जबाग दिखाकर मतदाताओं पर राज करने की कोशिश में लगी है।कोई बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट संकल्प यात्रा का आयोजन कर मतदाताओं को गोलबंद करने की कोशिश में लगे हैं,तो कोई अपनी डफली,अपना राग अलाप रहे हैं।लेकिन अनोखे और निराले अंदाज में निषाद आरक्षण संकल्प यात्रा निकालकर वीआईपी सुप्रीमो सह बिहार सरकार के पूर्व मंत्री मुकेश साहनी जो कुछ कर रहे हैं,वह न ही ‘इंडिया’गठबंधन के नेताओं को रास आ रहा है और न ही एनडीए नेताओं को सुहा रहा है।बात अलग है कि सन ऑफ मल्लाह कहे जाने वाले मुकेश सहनी के निषाद आरक्षण संकल्प यात्रा की न ही कोई पार्टी या गठबंधन समर्थन कर पा रही है और न ही विरोध कर कोई नई लड़ाई मोल लेने की हिम्मत कर रहे हैं।
लेकिन यह तय है कि मुकेश सहनी के निषाद आरक्षण संकल्प यात्रा में निषाद जाति के लोगों की गोलबंदी देखकर एनडीए और ‘इंडिया’गठबंधन नेताओं के कलेजे पर सांप जरुर लोट रहा है।बीजेपी ने विधान पार्षद हरि सहनी को विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बनाकर मुकेश सहनी के सामने पहाड़ खड़ा करने की कोशिश जरुर की है।लेकिन कम से कम सोशल मीडिया पर हरि सहनी के मुकाबले मुकेश सहनी को निषाद जाति का अधिक मिल रहे समर्थन से बीजेपी हताश भी है।यही कारण है कि दोनों गठबंधन के नेताओं की चाहत है कि मुकेश सहनी उनके गठबंधन में शामिल होकर लोकसभा चुनाव लड़ें।हालांकि एक सौ एक दिनों के संकल्प यात्रा पर निकले मुकेश सहनी लगभग पचास दिनों की यात्रा पूरी करने के बाद भी अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं हैं और निषाद जाति के लोगों को शपथ खिला- खिलाकर अपने पक्ष में गोलबंद करने में लगे हैं।बिहार, यूपी और झारखंड में रहने वाले मल्लाह जाति के लोगों के हाथों में गंगा जल दिलवाते हैं और यह शपथ खिलवाते हैं कि आरक्षण नहीं तो गठबंधन नहीं और गठबंधन नहीं तो वोट नहीं।निषाद जाति के लोगों को इस बात के लिए भी शपथ खिलवाते हैं कि अपना वोट किसी भी कीमत पर बेचेंगे नहीं।वैसे बीच-बीच में वह बीजेपी को चुनौती देकर यह स्पष्ट जरुर कहना चाह रहे हैं कि वह एनडीेए गठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़ने वाले नहीं है।कभी लालू तो कभी नीतीश की प्रशंसा कर वह यह भी जताने की कोशिश करते हैं कि वह उनके करीब हैं।फिर वह पलटी मारते हुए यह भी कहते नजर आते हैं कि बिहार में सीएम नीतीश कुमार कोई फैक्टर नहीं हैं।मुकेश सहनी फैक्टर बन गया है।
लेकिन उनके लिए सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि ‘इंडिया’ गठबंधन की तरफ से भी किसी तरह का न्यौता मिलता दिखाई नहीं पड़ रहा है।तेजस्वी यादव यह चाहते भी नहीं हैं कि उनके सामने कोई उभरता या राजनीतिक तौर पर खूंटा गाड़ चुका नेता अभी या भविष्य में उनके सामने राजनीतिक तौर पर चुनौती पेश करे।इन सब बातों को छोड़ भी दें तो मुकेश सहनी चाहते हैं कि एनडीए उन्हें भी लोजपा जितनी ही सीटे दे और अगर ‘इंडिया’ गठबंधन की तरफ से ऑफर मिलता है तो कांग्रेस जितनी सीटें मिले।
ऐसी स्थिति में राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मुकेश सहनी चाहे जितनी भी ताकत दिखा लें या चाहे जितना भी हाथ पैर मार लें।लेकिन एनडीए या ‘इंडिया’ गठबंधन उन्हें अधिकतम दो सीटों से ज्यादा इसीलिए देने को तैयार नहीं हो सकती है,क्योंकि उनके पास चुनाव जिताउ उम्मीदवार नहीं है दूसरी बात यह है कि ‘इंडिया’ गठबंधन और एनडीए गठबंधन के बीच जिस तरह के आर-पार की लड़ाई का खांका खींचा गया है,उस परिस्थिति में कोई भी गठबंधन पलटी मारने वाले नेताओं को लेकर कोई बड़ा रिस्क लेने को तैयार नहीं है।ऐसी स्थिति में मुकेश सहनी निषाद आरक्षण संकल्प यात्रा करते-करते थक जाएं और उनकी नाव बीच राजनीतिक मझधार में फंसकर डगमगाने लगे।यानि कि न ही उन्हें एनडीए में शामिल होने का अवसर मिले और न ही ‘इंडिया’गठबंधन कबूल करे तो शायद किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।इस विषम परिस्थितियों में तीसरे मोर्चे के गठन की वकालत कर अगर जाप,बसपा और ओबैसी की पार्टी के साथ लोकसभा चुनाव 2024के दंगल में कूदने की मुकेश सहनी रणनीति तैयार करने को मजबूर हो जाएं,तो यह भी आश्चर्य का विषय नहीं होना चाहिए।बहरहाल,लोकसभा 2024चुनाव में अभी देर है।इसीलिए स्पष्ट तौर कुछ कहा तो नहीं जा सकता है,लेकिन राजनीति में कुछ भी संभव या कुछ भी असंभव नहीं होता है।इसीलिए पूरी स्थिति पर सबकी पैनी नजर है।।