राजेश सिन्हा
बिहार में चुनावी नगाड़ा तो नहीं बजा है,लेकिन अपना-अपना ‘डमरु’सब बजा रहे हैं।विभिन्न पार्टियों में गहमागहमी देख अंदाजा भी लग जाता है,कि जनता को रिझाने की कोशिश नेताजी क्यों कर रहे हैं!जीत किस पार्टी या गठबंधन को मिलेगी और मुख्यमंत्री कौन होंगे,यह गंभीर बहस का विषय बना हुआ है।किस पार्टी को कितनी सीटें आएगी,रिपोर्ट में नहीं बताया गया है,लेकिन एक सर्वे रिपोर्ट ने तेजस्वी की खुशियों में चार चांद लगा दिया है।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि,शायद यह भी एक बड़ा कारण है कि,कुछ दिन पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने नीतीश को विकास के प्रति समर्पित बताते हुए लाडला मुख्यमंत्री बताया था।
बावजूद इसके,आश्चर्यजनक स्थिति यह है कि,जिस मुख्यमंत्री को पीएम नरेंद्र मोदी ने लाड़ला बताया था,उनके सामने तीन ऐसे चेहरे को सामने खड़ा कर दिया गया है,जिनमें एक उन्हें चुनौती देते नजर आ रहे हैं।
सीएम नीतीश के इकलौते पुत्र निशांत भी अब मीडिया के सामने आकर कह रहे हैं कि, उनकी पार्टी जदयू के नेता- कार्यकर्ता सहित बीजेपी को भी ऐलान करना चाहिए कि नीतीश कुमार ही एक बार फिर मुख्यमंत्री बनेंगे।निशांत अपनी पार्टी के नेता-कार्यकर्ताओं से यह भी कह रहे हैं कि,उनके पिता द्वारा किए गए काम को जन-जन तक पहुंचाए।
लेकिन,एक सर्वे कंपनी द्वारा कराए गए सर्वे में यह दिखाया जा रहा है कि,इस बार नीतीश कुमार नहीं,अपितु तेजस्वी यादव बिहार के सीएम बन सकते हैं।बात अलग है कि भागलपुर में आयोजित एक बड़ी सभा को संबोधित करने पहुंचे नरेन्द्र मोदी नीतीश कुमार को लाडले मुख्यमंत्री कहते हुए एक तरह से चुनावी रणभेरी बजा चुके हैं और नीतीश कुमार पांचवीं बार सरकार बनाने की तैयारी कर रहे हैं।
लेकिन,सी-वोटर सर्वे के अनुसार सीएम पद के लिए बिहार की जनता ने तेजस्वी को जहां अपनी पहली पसंद बताया है,वहीं नीतीश कुमार को दूसरे स्थान पर रखा है।महागठबंधन के नेता भी तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लगातार अपनी जीत के दावे कर रहे हैं।हालांकि कांग्रेस राजनीतिक वितंडा खड़ा करने की कोशिश में लग गयी है और इसका खामियाजा महागठबंधन, खासकर तेजस्वी को भुगतना पड़ सकता है।
कह सकते हैं कि,इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर बिहार की राजनीति में अभी से ही जोर आजमाइश शुरु हो चुकी है।
लेकिन,यह देखना जरुर दिलचस्प होगा कि बिहार की जनता किन्हें अपने अगले मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती है।क्योंकि सीएम को लेकर जो बड़ा सर्वे रिपोर्ट सामने आया है,वह नीतीश कुमार के लिए चिंता बढ़ाने वाली है।देश की सबसे बड़ी सर्वे कंपनी सी- वोटर की एक रिपोर्ट में बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी के नाम की सुनामी आती नजर आ रही है।
इस सर्वे पर अगर भरोसा करें तो महज 18फीसदी लोग ही चाहते हैं कि,नीतीश कुमार पांचवी बार मुख्यमंत्री बनें।
जबकि,बिहार की 41 फीसदी जनता की पसंद तेजस्वी यादव हैं।हालांकि,चुनाव में अभी वक्त है।लेकिन,नीतीश कुमार के लिए यह बड़ा जरुर संकेत है।
जदयू को इस बात का मूल्यांकन करना होगा कि,बिहार की जनता के लिए अब नीतीश कुमार के बजाय तेजस्वी यादव पहली पसंद आखिर क्यों बन गए हैं।सीएम नीतीश की लोकप्रियता कम होने का कारण आखिर क्या है?
सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 58 प्रतिशत लोगों का मानना है कि नीतीश कुमार की विश्वसनीयता में काफी कमी आई है।13 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनकी विश्वसनीयता में कुछ हद तक कमी आई है,जबकि 21 प्रतिशत ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री की विश्वसनीयता में कोई कमी नहीं देखी है।बावजूद इसके यह कहा जा सकता है कि,सर्वे में शामिल ज्यादातर लोगों की पहली पसंद नीतीश कुमार नहीं हैं।सर्वे रिपोर्ट पर अगर भरोसा करें तो आरजेडी नेता तेजस्वी यादव बिहार में सीएम पद के लिए सबसे पसंदीदा चेहरा बनकर सामने आए हैं।
नीतीश कुमार को जहां दूसरे स्थान पर रखा गया है,वहीं इसमें प्रशांत किशोर को भी जगह दी गई है।सर्वेक्षण में शामिल लोगों से जब उनकी पहली पसंद के बारे में पूछा गया तो 15 प्रतिशत ने जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर को अपनी पसंद बताया।वैसे,8 प्रतिशत लोगों ने बीजेपी के सम्राट चौधरी और 4 प्रतिशत ने लोकजन शक्ति पार्टी (रामविलास)के अध्यक्ष चिराग पासवान को मुख्यमंत्री पद के लिए उपयुक्त बताया।
सबसे खास बात यह है कि, पचास प्रतिशत लोगों ने ना केवल मौजूदा सरकार के प्रति नाराजगी प्रकट की है,बल्कि बदलाव की भी आकांक्षा प्रकट की है।वैसे राहत की बात यह है कि 22 प्रतिशत लोगों का जहां यह कहना है कि,वे नाराज तो हैं, लेकिन बदलाव नहीं चाहते,वहीं, 25 प्रतिशत लोगों ने यह कहकर ‘सरकार’ के जख्म पर शायद मरहम लगाने का काम किया है कि,वे न तो नाराज हैं और न ही कोई बदलाव चाहते हैं।
बात अगर बेरोजगारी की करें, तो 45प्रतिशत लोगों ने कहा कि, इस बार के विधानसभा चुनाव में बेरोजगारी बहुत बड़ा मुद्दा होगा और अधिकतर मतदान इसी पर होगा।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि,सर्वे रिपोर्ट चुनावी नतीजा नहीं होता।ऐसा इसीलिए भी कि,जो समर्पित भाव से मतदान करते हैं,वो मीडिया या किसी भी सर्वे कंपनी के पास खुलकर बहुत कुछ कहने से बचते हैं।ऐसे में सर्वे रिपोर्ट पर सवाल उठना लाजिमी है।
बहरहाल,सर्वेक्षण के नतीजे ऐसे समय में आए हैं,जब बिहार में मंत्रीमंडल का विस्तार हुआ है और नीतीश केबिनेट में शामिल हुए बीजेपी के सात मंत्रियों में से तीन ऐसे मंत्री हैं,जो सीएम नीतीश के विरुद्ध किसी ना किसी तरीके से आंखे तरेर चुके हैं!!