एसडीएफ न्यूज ब्यूरो
खगड़िया।जिले के अलौली प्रखंड अंतर्गत साहसी पंचायत के खानकाह फरिदिया जोगिया शरीफ में शनिवार को ईद की नमाज़ अदा कर के अमन चैन व खुशियों के लिए के लिए दुआ मांगी गई।जोगिया शरीफ में ईद की नमाज़ अदा करते हुए हजरत मौलाना अल्हाज बाबू मोहम्मद सईदैन फरीदी ने मुस्लिम समुदाय के लोगो को आपसी एकता व भाईचारे का संदेश दिया।शनिवार की रात में चांद देखने के बाद से ही ईद पर्व के मुबारकबाद देने का दौर शुरु हो गया था।शनिवार की सुबह नए कपड़े पहनकर हजारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग खानकाह शरीफ के मैदान में ईद की विशेष नमाज़ अदा करने पहुंचे।अमन चैन की दुआएं के साथ ही सभी के लिए खुशियों की दुआ मांगने को ले हजारों हाथ उठे।सुबह 6 बजे से ही नमाजियों का रेला खानकाह के मैदान की ओर आता दिखाई देने लगा।सात बजते-बजते मैदान का अंदरुनी हिस्सा भर गया।देर से पहुंचे लोग दरगाह की सीढ़ी से लेकर बाहर मदरसा तक चादर व जानमाज बिछाकर नमाज पढ़ते नजर आए।
मौलाना सईदैन फरिदी ने नमाज के बाद मुल्क की खुशहाली और तरक्की के लिए दुआ कराई।इंसानों में एक-दूसरे के प्रति मोहब्बत पैदा करने की दुआ भी मांगी गई।दुआ के बाद मौलाना ने खुत्बा पढ़ा।खुत्बा खत्म होने के बाद लोगों ने एक दूसरे को गले मिलकर ईद की बधाई दी।नमाज से पहले अलौली में खानकाह फरीदिया के सज्जादा नशीन हज़रत मोलाना बाबु सईदैन फरिदी ने अपनी तकरीर में रसूल अल्लाह सल्ललाहु अलैहे वसल्लम के जिंदगी के बारे में बताया।लोगों को उनकी सुन्नतों पर अमल करने की ताकीद की।बच्चे-बड़े सभी ने ईद की मुबारक बाद देते हुए एक-दूसरे को गले लगाया।
दोस्तों,रिश्तेदारों व जान-पहचान वालों से मिलकर लोगों ने ईद की खुशियां मनाई।मुस्लमान रमज़ान उल-मुबारक के एक महीने के बाद एक मज़हबी ख़ुशी का त्यौहार मनाते हैं।जिसे ईद उल-फ़ित्र कहा जाता है।ये यक्म शवाल अल-मुकर्रम्म को मनाया जाता है।ईद उल-फ़ित्र इस्लामी कैलेण्डर के दसवें महीने शव्वाल के पहले दिन मनाया जाता है।इसलामी कैलंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चांद के दिखने पर शुरु होता है।
मुसलमानों का त्योहार ईद मूल रूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है।इस त्योहार को सभी आपस में मिल के मनाते है और खुदा से सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगते हैं।पूरे विश्व में ईद की खुशी पूरे हर्षोल्लास से मनाई जाती है।ईद-उल-फितर उन त्योहारों में से एक है,जो मुस्लिम समुदाय के लिए बेहद खास है।एक महीने तक रोजा रखने के बाद ईद के इंतजार की खुशी अलग ही होती है।इस्लामी कैलेंडर के अनुसार,साल के नौवें महीने में रोजा रखा जाता है और रमजान के अंतिम दिन बड़ी धूम-धाम से ईद का त्योहार मनाया जाता है।इस दिन सभी रोजेदारों के रोजे पूरे हो जाते हैं।जैसे ही लोग रमजान खत्म होने के करीब पहुंचते हैं।ईद मनाने की तारीख चांद दिखने के हिसाब से ही मुकम्मल की जाती है।जिस दिन चांद दिखता है,उस दिन को चांद मुबारक कहा जाता है।ईद के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर फज्र की नमाज अदा करते हैं।इसके बाद एक दूसरे को बधाइयां देने के साथ ही ईद का त्योहार मनाया जाता है।बाबू मोहम्मद सिबतैन फरीदी ने बताया कि ईद-उल-फितर का महत्व मुस्लिम समुदाय के लिए ईद-उल-फितर बेहद खास है।ये अल्लाह का शुक्रिया अदा करने का दिन है।इस्लामिक चंद्र कैलेंडर में नौवां महीना रमजान का है।वहीं दसवां महीना शव्वाल है।शव्वाल का पहला दिन दुनिया भर में ईद-उल-फितर के त्योहार के रूप में मनाया जाता है।शव्वाल का अर्थ है,’उपवास तोड़ने का त्योहार।इस दिन सुबह सबसे पहले नमाज अदा की जाती है।इसके बाद खजूर या कुछ मीठा खाते हैं।इसके साथ ही ये सद्भाव और खुशियों का त्योहार शुरू हो जाता है।लोग एक दूसरे के गले मिलते हैं और उपहार देते हैं।सभी रिश्तेदार और दोस्त एक दूसरे के घर जाते हैं।घरों में तरह-तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं।
बताया गया कि,ईद की शुरुआत मदीना नगर से उस वक्त हुई थी,जब मोहम्मद मक्का से मदीना आए थे।
मोहम्मद साहब ने कुरान में दो पवित्र दिनों को ईद के लिये निर्धारित किया था।इस तरह से साल में दो बार ईद मनाई जाती है।जिसे ईद-उल-फितर और ईद-उल-अजहा कहा जाता है।