राजेश
रेलवे की खाली पड़ी जमीन पर किसके इशारे और संरक्षण में मौत की दुकानें सज रही है,यह तो रेल प्रशासन ही जानें।लेकिन जिस हिसाब से दर्जनों खुदरा दुकानें खोल दी गयी है और रेल पटरियों को पार कर लोग खरीददारी करने आ-जा रहे हैं, उसे देखकर यह जरुर कहा जा सकता है कि,कभी भी इस अवैध बाजार के कारण बड़ी दुर्घटना होने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है।
हालांकि,पार्किंग व स्टेकिंग के नाम पर दर्जनों खुदरा दुकान खोल कर बाजार लगाने के मामले में सोनपुर डीआरएम ने कार्रवाई के आदेश दिए हैं, लेकिन,एक सवाल पूरे खगड़िया में गूंज रहा है कि,मामले में जांच कर कार्रवाई का निर्देश सीनियर डीसीएम को देने वाले सोनपुर डीआरएम क्या इतने कमजोर हैं कि,उनके आदेश का पालन करने में संबंधित अधिकारी “कंजूसी” बरत रहे हैं।
सवाल यह भी उठ रहा है कि, आखिर माल का कितना बड़ा खेल हो गया कि,डीआरएम के आदेश को भी ठेंगा दिखाते हुए दबंग ठेकेदार सड़क पर किसी तरह छोटी-छोटी दुकानें लगाकर अपना और अपने बच्चों का परवरिश करने वाले दुकानदारों को अपनी दुकान हो जाने का सब्जबाग दिखाकर पैसे वसूल रहे हैं।स्थिति का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि,अपनी जिंदगी संवरने का सपना देख चुके दुकानदार कैमरे के सामने आने से परहेज तो करते हैं।लेकिन,जब यह समझ जाते हैं कि,हमे साथ देने वाला बंदा है,तो इतना जरुर कहते हैं कि,महाजन से कर्ज लेकर हम लोग पचास हजार से लेकर एक लाख रुपए तक दिए हैं।
दुकानदारों को जब हमारी टीम ने यह भरोसा दिलाया कि,आपका नाम उजागर नहीं करेंगे तो उसने वह कुछ बता दिया,जिसे जानकर सबका माथा चकरा जाना संभव है।खैर!
इस खबर के अंत तक पहुंचकर हम और हमारी टीम यह उजागर करने का प्रयास जरुर करेगा कि,कानून और वरीय अधिकारियों के आदेश को ठेंगा दिखाने वाला किस तरह सिस्टम पर हावी होता जा रहा है|
उन लोगों ने बताया कि,जगह यानि क्षेत्रफल के हिसाब से वर्तमान समय में एक से दो सौ रुपये तक रोज लिया जाता है।पहले बीस-तीस रुपये देते थे।अब साइज के हिसाब से पैसा लेता है।जब यह पूछा गया तो उन लोगों ने एक ऐसे नेता के विषय में बताया जो वर्तमान समय में जदयू के एक प्रकोष्ठ संभाल रहे हैं।टेंट और कुर्सी की बड़ी दुकान है।
रसूखदार हैं और छोटे-छोटे दुकानदारों पर बड़ी पकड़ है।ऐसे में एक सवाल और है कि, डीआरआरएम के आदेश की धज्जियां उड़ाने वाले ठेकेदार अगर मजबूत निकले,तब तो दुकानदारों के लिए शौगात होगा।लेकिन अवैध तरीके से सज रही इन दुकानों के कारण अगर कुछ लोग रेल दुर्घटना का शिकार हो गया तो जिम्मेदारी की चादर ओढ़ेगा कौन!सुलगता सवाल यह भी कि,अगर “माल” देकर पैमाल हो गए तो रोएगा कौन?